A Bal Krishnan Blog

उखड़े उखड़े से कुछ अल्फाज़ यहाँ फैले हैं; मैं कहूँ कि ज़िन्दगी है, तुम कहो झमेले हैं.

Sunday, April 17, 2011

Gardish

सोती है जब आधी दुनिया, तब दो आँखें रोती  हैं;
कूए-दिल की तन्हाई में खुद से बातें होती हैं. 

ख़्वाबों की रंगीं पोशाक में, आ गयीं जब मैं बेसुध था,
सोचा था कि हमको जगाकर, अब वो चैन से सोती हैं.

यूँ चाँद की खामोशी थी गज़ब, सुनकर ये मेरा हाल-ए-उल्फत,
उनकी नज़रों में जैसे मुझे खामोशी अक्सर मिलती  है.

कितनी रस्में, कितने पहरे, सच के कितने झूठे चेहरे;
मासूम से दिल की इस महफ़िल में, क्या क्या हालत होती है.

तारों की गर्दिश ने क्या क्या खेल किये हैं, मत पूछो;
आँखों में कल ताजमहल था, अब अश्कों के मोती हैं.

'अब्र' तुम्हारा दिल ही जला, इंसान यहाँ तो जलते हैं;
यह दुनिया है इंसानों की, यहाँ ऎसी ही बातें होतीं हैं.

1 comment:

  1. yeeh rachna bhi khub kahi hai janab, shurwaat jitani mohobaat se huyi thi anth utna hi kathor pratit hua.

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