A Bal Krishnan Blog

उखड़े उखड़े से कुछ अल्फाज़ यहाँ फैले हैं; मैं कहूँ कि ज़िन्दगी है, तुम कहो झमेले हैं.

Thursday, February 24, 2011

Barsaat



मेरी नज़रों ने तुमको देखा, ये बात पता कल रात हुई;

पलकों के अम्बर के नीचे जब बिन मौसम बरसात हुई.



सोच रहा हूँ सपना है; पर अपना क्या, जानूं कैसे?

दिल को ही कहते हो झूठा; फिर तुम सच्चे, मानूँ कैसे?

पहले भी बहारें आती थीं, सावन भी महका करता था;

फागुन की शोख़ हवाओं में, यह मन भी बहका करता था.


कितने ही ज़लवों से अब तक मेरी आँखें दो-चार हुईं.



इन नाज़ुक होंठों सी सुर्ख़ी, क्या अब तक देखी नहीं कहीं?

या वाणी की झंकार से अब कोकिल की कीमत नहीं रही?

क्या सच है, पता नहीं मुझको; पर दिल ने अब यह मान लिया.

जीवन है अमा बिना तेरे, मरना तेरे संग ठान लिया.



तेरी चाहत का रंग पाकर मेरी दुनिया गुलज़ार हुई.



सूरज की प्रथम किरण जैसे तुम मेरे मन में समा गई.

मौसम का तेवर बदल गया, रंगीन फिज़ां गुदगुदा  गई.

सीख गया आँखों की भाषा; समझ गया, धड़कन के स्वर को.

जाना वह कौन सी शै है, जो इंसान बनाती पत्थर को.


सैलाब बहुत देखे थे, पर अब शबनम से पहचान हुई.



अब बदल के मेरी दुनिया को, तुम अगर अचानक बदल गए;

सच्चे दिल की पहचान हो तुम, मेरा दिल तोड़ के निकल लिए.

खोना पाना तो जीवन है, पर जीवन ही जब खो जाये;

यादों के सहारे दुनिया में फिर कैसे गुज़ारा हो पाए!


सूनी आँखों में पानी है, ये मुझको तेरी सौगात हुई.

Wednesday, February 23, 2011

Paarijat

कल्पवृक्ष का फूल
पूछता सत्य की भाषा,
मांगे जीवन की आशा;
जाने क्या अभिलाषा.

खुद से कितना दूर!
आह.. ये कैसी भूल.
ये कैसा उन्माद!
किस का ये उत्पात!
न हवा का कोई झोंका,
न तड़ित का वार.
ओस की इक बूँद से,
 खो गया, 
इक कली का हास,
चाँदनी का मुक्त विलास.
गया सब कुछ हार.
रह गया मधुमास
शेष. 

मेरे जीवन की पतवार,
खो गयी,
जाने कहाँ;
 मेरे सपनों की मधुरिमा,
मेरे जीवन की उषा,
खो गयी,
 जाने कहाँ..
मुझको जगाकर सो गयी.
और मैं....

रह गया इक पात.
अब कैसा पारिजात?
खो गए जब प्राण;
मिला नया सा ज्ञान.
कैसा फूल?
वो तो थी इक भूल !
यह नया लोक!
न सुख न शोक!
फूल था नादान,
अब हुआ इंसान.
तोड़कर जो फूल को 
घर को सजाता है.
बेंधकर उनके हृदय,
मुस्कुराते देखकर;
खुशियाँ मनाता है.

हँसी आती है अब
उनपर, क्योंकि
अब नहीं मैं फूल,
है मुझे यह ज्ञात!

Pyas

देखो मुझे, बातें न करो आस पास की;
छा जाओ तुम, लगती है ये बरखा उदास सी.

यादों में तुम्हारी मुझे मिलता है आसमान;
सपनों में दे जाती हो तुम किरणें प्रकाश की;

कितनी कठिन डगर है ये पूछो न मुझसे तुम;
योगी मिसाल देते हैं हमारी प्यास की.

कुछ ऐसा लगा आके इस अनजान नगर में;
हर डगर को है खोज तुम्हारे निवास की.

कितना भी पढ़ूँ, हमेशा मिलता है नयापन;
चेहरा है या कविता वो कोई कालिदास की.

Monday, February 14, 2011

Swapnadevi

मिटा कर अहसास मेरे, कर न लेना तुम किनारा.
वनवास में जीवन के तेरी आस ही मुझको सहारा.

कंटकों का डर, जिसे वो मैं नहीं;
टूटकर जाये बिखर, वो मैं नहीं;
फूल या पत्थर मिले, कुछ भी सही.

होके पत्थर, ज़माने की डगर को मैंने संवारा.

सोचता हूँ, क्या तुम मेरे प्राण हो;
या मेरे अस्तित्व का अभिमान हो;
जो भी हो, अब तुम मेरी पहचान हो.

तुम मेरे संबल सबल, उलटी मेरे जगती की धारा.

जगत है यह स्वप्न और तुम स्वप्नदेवी;
सत्य का मैं भक्त हूँ, पर स्वप्नसेवी.
स्वप्न हैं शाश्वत और मैं अल्पजीवी.

चन्द्र तुम रातों के मेरे, और मैं टूटता तारा..


Celebrating the love festival

I don't know exactly who Mr Valentine was..or what the historical significance is associated with the valentine day. Nevertheless, the mere dedication of a single day in the year to the eternal and innocent phenomenon of love, and that too in such a beautiful part of the year, makes it enough for me to take this time seriously.
For me, love is the most natural attribute of a human, lying in the core of heart..something that keeps one honest (love is inherently opposed to hypocrisy), and true (in a child like manner). It is a shade that when appears, renders all the colours of life brighter..it provides the contrast in your life. Just the opposite happens as the withdrawal symptom of love.
At the occasion of this sentimental time, I cheer up all the youth who have love in their life and appeal them to keep the lively spirit up. Simultaneously, I want to pass this year's Valentine day with the fellows for whom the life's equations have not been such favourable and this day is no longer a symbol of enormous positive energy. There are the hearts where all the excitement and sheer joy due to the proximity of the beloved is converted into an insurmountable darkness and dejection due to a distance between hearts..just like the after-effect of a heavy liquor party; and the feeling that there is someone very loving to you translates into a void close to your heart that blurs your senses and the whole world starts appearing strangers.
 I'm going to celebrate this Valentine day by gathering my poems written in the past and post them on the platform of Spandan. It's not feasible to upload all of them once, therefore, I'll do it gradually within a short period of time.

जो दर्द रुंधे थे साँसों में, वो आज ज़ुबां पर आयेंगे; 
जो अश्क़ दफ़न थे आँखों में; वो आज उफक़ पर छाएँगे.
अल्फाज़ यहाँ बेमानी हैं; यहाँ अश्क़ का मतलब पानी है;
ज़ज़्बात की इस मण्डी में मेरे, अहसास भी बिकने आयेंगे.