A Bal Krishnan Blog

उखड़े उखड़े से कुछ अल्फाज़ यहाँ फैले हैं; मैं कहूँ कि ज़िन्दगी है, तुम कहो झमेले हैं.

Saturday, July 16, 2011

Apni Bebasi Par

The following picture of the boy Vipin Soni in Mumbai crying over the death of his brother forced me to express my anguish in the following lines:

है चुनौती, कोई इसके अश्रु  पोछे ;
अब न भौंके कूटनीतिक वाक्य ओछे.

जल रही दुनिया, जला संसार इसका,
डूबे सपने, उजड़ा है परिवार इसका
मिट चुका इंसान से विश्वास इसका.

देखे इसकी आँख से यह देश कोई;
ढूँढ़े बढ़ते भारत का अवशेष कोई;
फिर दे हमको सहन का निर्देश कोई.

फटा सीना नहीं जो अब भी तुम्हारा,
समझ जाओ, हृदय गोबर हो चुका है;
अपनी आँखें आँसू पी कर थक चुकी हैं,
पानी कब का सर से ऊपर हो चुका है.

नायकों इस देश के, कुछ शर्म पालो;
हृदय में कुछ हया, कुछ तो दर्द डालो;
चुल्लू भर पानी में खुद को मार डालो.

Saturday, July 9, 2011

Gard-e-Sozistaan

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तेरे संग होने का अहसास गर नहीं होता;
ग़म-ए-दुनिया से दिल यूँ बेखबर नहीं होता.
कितने रिश्तों की झलक एक तुझमें मिलती है,
कोई यूँ साथ हर मुक़ाम पर नहीं होता.

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मासूम है तू शब-ए-शबनमी की तरह; 
प्यारी किसी खोयी हुई ख़ुशी की तरह.
कभी फुर्सत दे तो ये शिक़वा
भी करूँ:
बेदर्द तू भी है जिंदगी की तरह!

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साज़-ए-नफ़स का तराना तुम हो;
मेरे जीने का बहाना तुम हो.
फिर क्यों ये कभी कभी लगता है,
कि मैं हूँ मैं और ज़माना तुम हो.


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ये गीत तुम्हारी याद में फिज़ाएं गायेंगी.
जब तुम नहीं होगे, तो हमको रुलायेंगी.
हम तो भुला नहीं सकेंगे उम्र भर तुम्हें,
क्या तुमको भी भूले से मेरी याद आएगी?


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रिश्ता तुम्हारा ज़रा गहरा है शराफत से;
नज़रें सो मुझसे
मिलाते हो कुछ किफायत से.
इंसान-ए-सादादिल हूँ, ऐयार नहीं हमदम;
नफरत हो जाये क्यों न, दुनिया की शराफत से.


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राह-ए-उल्फ़त पे चलना है तो हुनर सीखो.
वस्ल से पहले तुम हिज़्र का सफ़र सीखो.
संग जो निकलेगा माशूक के हाथों से कल;
शर्त ये है उसे भी प्यार की नज़र देखो.


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थक गया, बेक़ल हवाओं, सोने दो अब; 
चाँद की जलती शुआओं, सोने दो अब.

कल की खातिर आस के कतरे पलक में
बचा लो बोझिल निगाहों, सोने दो अब.
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Saraab

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शिक़वे रखना हो तो रखना भले ज़माने से;

चूकना मत मेरे ज़ज़्बात आजमाने से.


नींद अपनी भी बेवफाई सी कर जाती है;

खींच ले जाती है तुम तक किसी बहाने से.


हमने तो तुमको एक किताब--सदाक़त समझा;

फिर भी क्यूँ तुम्हे हम लगते रहे फ़साने से?


तुम तो अंजुम हो इस सवाद--जिंदगानी में;

गुरेज़ करो खुद को सराब कहे जाने से.


दर्द उठता है तो बस नाम तेरा लेता हूँ;

दिल चटख उठता है फिर तेरी याद आने से.
 
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Saturday, July 2, 2011

Ab bhi khamosh raaton mein aksar

अब भी खामोश रातों में अक्सर
चुपके से बादलों के पीछे से,
एक-दो ख्वाब आ जाते हैं कभी.
दर्द की बिजली चमक उठती है.
रात छितरा के बिखर जाती है.

अब भी खामोश रातों में अक्सर
ढूँढने लगता हूँ कुछ दूर कहीं  
यादों के बादलों में बिखरा सा.
दरिया आँखों से छलक जाता है,
और फिर नींद रूठ जाती है.

अब भी खामोश रातों में अक्सर
ज़िन्दगी को कुरेद करके कहीं,
पूछने लगता हूँ जब अपना पता,
एक बेग़ाने दश्त में खुद को
अपनी तलाश में पाता हूँ.
  
अब भी खामोश रातों में अक्सर
वक़्त मुसलसल भागता नज़र आता है
काले बियाबान रास्ते में एक रेल नुमा;
चाँद सिसकता है स्टेशन के लैम्पों की तरह
औ ज़िन्दगी कहीं पीछे छूटी जाती है.

अब भी खामोश रातों में अक्सर
तेरे नगमों की याद आती है.
गुज़रे बातों की याद आती है.
जिंदगी के बेसुरे सवालों में,
उलझकर साँसे थक सी जाती हैं.

और यूँ रात गुज़र जाती है.
अब भी खामोश रातों में अक्सर.....