चुपके से बादलों के पीछे से,
एक-दो ख्वाब आ जाते हैं कभी.
दर्द की बिजली चमक उठती है.
रात छितरा के बिखर जाती है.
अब भी खामोश रातों में अक्सर
ढूँढने लगता हूँ कुछ दूर कहीं
यादों के बादलों में बिखरा सा.
दरिया आँखों से छलक जाता है,
और फिर नींद रूठ जाती है.
अब भी खामोश रातों में अक्सर
ज़िन्दगी को कुरेद करके कहीं,
पूछने लगता हूँ जब अपना पता,
एक बेग़ाने दश्त में खुद को
अपनी तलाश में पाता हूँ.
अब भी खामोश रातों में अक्सर
वक़्त मुसलसल भागता नज़र आता है
काले बियाबान रास्ते में एक रेल नुमा;
चाँद सिसकता है स्टेशन के लैम्पों की तरह
औ ज़िन्दगी कहीं पीछे छूटी जाती है.
अब भी खामोश रातों में अक्सर
अब भी खामोश रातों में अक्सर
तेरे नगमों की याद आती है.
गुज़रे बातों की याद आती है.
जिंदगी के बेसुरे सवालों में,
उलझकर साँसे थक सी जाती हैं.
और यूँ रात गुज़र जाती है.
अब भी खामोश रातों में अक्सर.....
"काले बियाबान रास्ते में एक रेल नुमा;
ReplyDeleteचाँद सिसकता है स्टेशन के लैम्पों की तरह
औ ज़िन्दगी कहीं पीछे छूटी जाती है." Kya baat hai Baala saab..Gujzar saab ki yaad dila di aapne in lines se..bahut khub!
Waiting for more! Pavan
kya likhte ho bhai................suhan allah.............
ReplyDeleteबस कुछ लोग होते है..........जिनकी हर रात ही "ख़ामोश रात" सी होती है
और ख़ामोशी से गुज़र भी जाती है..........दुनिया के लिए..........
पर ये तो दर्द, तड़प, हलचल , और शोर में डूबी हुयी, इक अजीब से मंज़र से भरी होती है............
हाँ ये रात उन्हें ख़ामोश सी लगती है...... जिनके लिए ....... ये सारे मंज़र हम अपने दिल में कहीं दबा लेते हैं...........
Mutthi ki ret ki manind raat fisalti jati hai,
ReplyDeletemai intzar karta hun nind aane ka--
sone ke liye nahi tere khwabon ke liye!