A Bal Krishnan Blog

उखड़े उखड़े से कुछ अल्फाज़ यहाँ फैले हैं; मैं कहूँ कि ज़िन्दगी है, तुम कहो झमेले हैं.

Monday, February 14, 2011

Swapnadevi

मिटा कर अहसास मेरे, कर न लेना तुम किनारा.
वनवास में जीवन के तेरी आस ही मुझको सहारा.

कंटकों का डर, जिसे वो मैं नहीं;
टूटकर जाये बिखर, वो मैं नहीं;
फूल या पत्थर मिले, कुछ भी सही.

होके पत्थर, ज़माने की डगर को मैंने संवारा.

सोचता हूँ, क्या तुम मेरे प्राण हो;
या मेरे अस्तित्व का अभिमान हो;
जो भी हो, अब तुम मेरी पहचान हो.

तुम मेरे संबल सबल, उलटी मेरे जगती की धारा.

जगत है यह स्वप्न और तुम स्वप्नदेवी;
सत्य का मैं भक्त हूँ, पर स्वप्नसेवी.
स्वप्न हैं शाश्वत और मैं अल्पजीवी.

चन्द्र तुम रातों के मेरे, और मैं टूटता तारा..


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