ख़ुदा होता कोई तो उससे कुछ ग़िला करते;
वरना गलियों में भटकने के सिवा क्या करते.
तुम थे नज़रों में, सो हम चलते गए, जीते गए;
वरना यूँ ज़ीस्त की हम जी-हुजूरी क्या करते.
ज़हाँ के दर्द का तुमको है मुक़म्मल अहसास;
हम से दीवानों की, तुम कोई फिक़र क्या करते.
यक-ब-यक कभी जो लड़ जाती हैं उनसे नज़रें;
थामकर साँस वक़्त थमने की दुआ करते.
साक़ी, तू ज़ाम बेकद्रों को दिया करता है;
हम तो प्यासे हैं, वुज़ू करके जो पिया करते.
देखा होता जो एक बार ख़ुलूसे-नज़र से;
इश्क़-ओ-दीवानगी की हम तो इंतहा करते.
रंज़ बस इतना है कि, उनको यह गुमाँ भी नहीं;
जिनसे हम अपनी हस्ती का तर्जुमाँ करते
saheb, yeh to bilkul meri style ka sher ho gaya
ReplyDeleteयक-ब-यक कभी जो लड़ जाती हैं उनसे नज़रें;
थामकर सांस वक़्त थमने की दुआ करते.
bas itna kahungaa
"har sher aapne kaha itna khub, ham
na kehate mukkarrar toh kya kehate"