मेरी नज़रों ने तुमको देखा, ये बात पता कल रात हुई;
पलकों के अम्बर के नीचे जब बिन मौसम बरसात हुई.
सोच रहा हूँ सपना है; पर अपना क्या, जानूं कैसे?
दिल को ही कहते हो झूठा; फिर तुम सच्चे, मानूँ कैसे?
पहले भी बहारें आती थीं, सावन भी महका करता था;
फागुन की शोख़ हवाओं में, यह मन भी बहका करता था.
कितने ही ज़लवों से अब तक मेरी आँखें दो-चार हुईं.
इन नाज़ुक होंठों सी सुर्ख़ी, क्या अब तक देखी नहीं कहीं?
या वाणी की झंकार से अब कोकिल की कीमत नहीं रही?
क्या सच है, पता नहीं मुझको; पर दिल ने अब यह मान लिया.
जीवन है अमा बिना तेरे, मरना तेरे संग ठान लिया.
तेरी चाहत का रंग पाकर मेरी दुनिया गुलज़ार हुई.
सूरज की प्रथम किरण जैसे तुम मेरे मन में समा गई.
मौसम का तेवर बदल गया, रंगीन फिज़ां गुदगुदा गई.
सीख गया आँखों की भाषा; समझ गया, धड़कन के स्वर को.
जाना वह कौन सी शै है, जो इंसान बनाती पत्थर को.
सैलाब बहुत देखे थे, पर अब शबनम से पहचान हुई.
अब बदल के मेरी दुनिया को, तुम अगर अचानक बदल गए;
सच्चे दिल की पहचान हो तुम, मेरा दिल तोड़ के निकल लिए.
खोना पाना तो जीवन है, पर जीवन ही जब खो जाये;
यादों के सहारे दुनिया में फिर कैसे गुज़ारा हो पाए!
सूनी आँखों में पानी है, ये मुझको तेरी सौगात हुई.
chand panktiyan mann ko ulhasit harshit karti hai, kuch sochane pe majboor karti hai...
ReplyDeletejeevan ki jhalkiyaan kaffi khubsurat tarike se ukeri hai aapne Bala sahab..
read it again, loved it more
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