एक कविता मेरे एक गुरुजी द्वारा लिखित (सादर समर्पित) :
आहत पीड़ा का मरहम बन सकी न कोई बात;
नींद कहीं सो गई और हम जागे सारी रात.
पत्ते भी सो गए डाल पर, हवा कहीं जा सोई,
चलता रहा हृदय के गलियारे में जाने कोई;
अन्तहीन राहें, तम गहरा, नन्हा दीप अकेला,
किसे बताएँ क्या-क्या हमने कैसे-कैसे झेला?
नीड़ों के क्रंदन में अन्धड़ ओलों की बरसात;
नींद कहीं सो गई और हम जागे सारी रात.
बंजर चेहरे पर उग आई हैं अनगिनत व्यथाएँ,
हुईं न पूरी, रहीं अधूरी, कुछ अनमोल कथाएँ;
चक्रवात बन गए हादसे, हमें कहाँ ले आये?
कौन किसे ऐसे मौसम में, मन की पीर सुनाये?
कहाँ सहेजें जग की कोरी बातों की सौगात?
नींद कहीं सो गई और हम जागे सारी रात.
lovely it is !!
ReplyDeleteNice read
Thanks Jyoti!
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