A Bal Krishnan Blog
उखड़े उखड़े से कुछ अल्फाज़ यहाँ फैले हैं; मैं कहूँ कि ज़िन्दगी है, तुम कहो झमेले हैं.
Sunday, October 13, 2013
Monday, September 2, 2013
वातावरण प्रदूषित है
वातावरण प्रदूषित है।
इसे ग्लोबल वार्मिंग भी कह सकते हो, और कॉन्सन्स डेफनिंग भी।
पर चुनौती है यह हमारे अस्तित्व को।
एक चेतावनी है कि हम 'सभ्य' नहीं हुए हैं,
बल्कि अपने कपड़े मात्र बदल लिए हैं।
अभी भी हमारे जनमानस का पुरुषार्थ
नहीं निकल पाया है रोटी, सैक्स और वंश बढ़ाने की पुरातन कन्दराओं से।
आर्थिक विकास की दौड़ में हम अनभिज्ञ हैं अपने हाथों के दिन दूने रात चौगुने बढ़ते नाखूनों से।
मानव-जीवन की सफलता जीतने या पूजने से कब तक परिभाषित होगी?
सुख की परिभाषा कब तक आत्म-प्रवंचना पर अवलम्बित होगी?
शान्ति का मूल्य कब तक मानव-अस्मिता का दमन होगा?
धरती, हवा, आकाश सबके अधिनायक,
मत भूलना कि तुम्हारा तन्त्रजाल महज एक समझौता है,
जो कभी भी तोड़ा जा सकता है।
एक मनुष्य की अस्मिता व चेतना
दुनिया के किसी भी कानून या किताब से कहीं बढ़कर है।
तुम हमें रोटी न दे सको, न सही;
हमारी हवा और सोच से खेलने का अधिकार मैं तुम्हें नहीं देता हूँ।
वातावरण प्रदूषित है।
पर यह तुमको नहीं दिखेगा, क्योंकि तुमको आज में जीना सिखाया गया है।
और आज में कभी कोई प्रदूषण नहीं होता है।
आज एक बच्चे की तरह निर्दोष होता है।
आज में जीते रहना आवश्यक है,
तुम्हारे 'सुख' के लिए, और समाज की 'शान्ति' के लिए।
आज की दुनिया में स्वप्न, स्मृति, आदर्श जैसी दकियानूसी अवधारणाएँ नहीं होती हैं।
छोड़ो इन बातों को उनके लिए जो इन चूहे-बिल्ली के खेलों में हमेशा फिसड्डी रहे हैं।
जिनके शब्दकोश में 'बिकना' अभी भी एक घृणित शब्द है;
और जिनके लिए 'सत्य', 'क्रान्ति' और 'सुख' में एक गहरा तालमेल है।
तुम तो इतना ही समझ जाओ तो बहुत है, कि
वातावरण प्रदूषित है।
इसे ग्लोबल वार्मिंग भी कह सकते हो, और कॉन्सन्स डेफनिंग भी।
पर चुनौती है यह हमारे अस्तित्व को।
एक चेतावनी है कि हम 'सभ्य' नहीं हुए हैं,
बल्कि अपने कपड़े मात्र बदल लिए हैं।
अभी भी हमारे जनमानस का पुरुषार्थ
नहीं निकल पाया है रोटी, सैक्स और वंश बढ़ाने की पुरातन कन्दराओं से।
आर्थिक विकास की दौड़ में हम अनभिज्ञ हैं अपने हाथों के दिन दूने रात चौगुने बढ़ते नाखूनों से।
मानव-जीवन की सफलता जीतने या पूजने से कब तक परिभाषित होगी?
सुख की परिभाषा कब तक आत्म-प्रवंचना पर अवलम्बित होगी?
शान्ति का मूल्य कब तक मानव-अस्मिता का दमन होगा?
धरती, हवा, आकाश सबके अधिनायक,
मत भूलना कि तुम्हारा तन्त्रजाल महज एक समझौता है,
जो कभी भी तोड़ा जा सकता है।
एक मनुष्य की अस्मिता व चेतना
दुनिया के किसी भी कानून या किताब से कहीं बढ़कर है।
तुम हमें रोटी न दे सको, न सही;
हमारी हवा और सोच से खेलने का अधिकार मैं तुम्हें नहीं देता हूँ।
वातावरण प्रदूषित है।
पर यह तुमको नहीं दिखेगा, क्योंकि तुमको आज में जीना सिखाया गया है।
और आज में कभी कोई प्रदूषण नहीं होता है।
आज एक बच्चे की तरह निर्दोष होता है।
आज में जीते रहना आवश्यक है,
तुम्हारे 'सुख' के लिए, और समाज की 'शान्ति' के लिए।
आज की दुनिया में स्वप्न, स्मृति, आदर्श जैसी दकियानूसी अवधारणाएँ नहीं होती हैं।
छोड़ो इन बातों को उनके लिए जो इन चूहे-बिल्ली के खेलों में हमेशा फिसड्डी रहे हैं।
जिनके शब्दकोश में 'बिकना' अभी भी एक घृणित शब्द है;
और जिनके लिए 'सत्य', 'क्रान्ति' और 'सुख' में एक गहरा तालमेल है।
तुम तो इतना ही समझ जाओ तो बहुत है, कि
वातावरण प्रदूषित है।
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